भरत क्षेत्र में अवसर्पिणी काल के तीसरे सुखमा दुखमा काल के अंत समय में भोगभूमि का अवसान और कर्म भूमि के प्रादुर्भाव काल में चौदह कुलकरो में अंतिम कुलकर नाभिराय-मरुदेवी के प्रथम तीर्थकर ऋषभनाथ हुए । भगवान ऋषभ देव ने कर्म भूमि के प्रारम्भ में जहाँ असि, मसि, कृषि, शिल्प, विद्या और वाणिज्य आदि षट्कर्म का उपदेश दिया और कर्म के आधार पर क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण की स्थापना की। वही सामाजिक व्यवस्था को व्यवस्थित बनाने के लिए सोमवंश, उग्रवंश और नाथवंश आदि वंशो की स्थापना की। आप स्वयं इक्ष्वाकुवंशी कहलाये। इन्ही वंशो का आगे विस्तार होता गया और उनके वंशो का उद्भव होता गया। अंतिम तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी के काल तक वंश परंपरा का बहुत विस्तार हो चुका था। इन वंशो में अनेक आचार्य, साधु आदि महापुरुषो ने जन्म लिया। भगवान महावीर 527 ईस्वी पूर्व मोक्ष गये। इसके उपरांत 62 वर्ष तक केवली, 100 वर्ष तक श्रुत केवली, दशपूर्वधारी 183 वर्ष, ग्यारह अंगधारी 123 वर्ष दशग ज्ञाता 97 वर्ष और एकागधारी 118 वर्ष तक हुए।
अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन गोलापूर्व महासभा
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सम्मानीय समाजजन, सादर जय जिनेंद्र ,अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन गोलापूर्व महासभा के निदेशक मंडल,ट्रस्टीगण,पदाधिकारियों, , संरक्षक मंडल,महिला इकाई पदाधिकारी, संकलनकर्ता , श्रेष्ठिजन एवं व
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